ये लगातर तीसरी रात थी, जब शहर में झमाझम बारिश बेसुध होकर बरसती ही जा रही थी। यातायात के तमाम साधन लगभग ठप्प हो चुके थे। पतले,संकरे शहर के सड़को में लबालब पानी भर चुका था।
दूसरी तरफ़ शहर से सटा वो एक सरकारी अस्पताल था, उसी के बगल में एक सरकारी मोर्ग भी था। जहां पोस्टमार्टम भी होता था। शायद इसलिए सामने ही एक सरकारी देशी शराब की दुकान भी थी। पोस्टमार्टम होने से पहले बॉडी को चीर फाड़ करने वाले लोग बग़ैर शराब के नशे के ये काम नहीं कर पाते थे। बड़ा दुसाध्य काम भी तो था ये।
ख़ैर रात के साढ़े दस बज रहे थे, पिछले तेइस मिनटों से बिजली भी गुल थी पूरे शहर में। एक तो अक्टूबर की हल्की सर्द रात, ऊपर से झमाझम बरसती बारिश, पश्चिम से बह रही शीतलहरी और इन सब से बढ़कर बिजली का गुल हो जाना। जनजीवन जैसे रुक सा गया था। नीम अंधेरे में डूबे शहर में कभी कभी बिजली के चमकने से रौशनी लहरा जाती और महज़ कुछ सेकंड बाद ही फ़िर शहर अंधेरे में कहीं खो जाता।
हाइवे से सटे इस सरकारी अस्पताल में पिछले दो घण्टे से काफ़ी चहल पहल थी। जितना इस मौसम में संभव हो सकता था उतनी बैटरी से जलने वाली इमरजेंसी लाइट्स की व्यवस्था की गई थी। किसी बड़े बिज़नेस मेन की धर्मपत्नी की आज डिलीवरी होनी थी। महिला पिछले दो घँटों से प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी। वैसे तो ये लोग इतने रईस थे कि इस सरकारी अस्पताल में इन लोगों का आना भी एक चमत्कार ही था, लेकिन आज जो चमत्कार इस शहर में होने वाला था इसकी भनक शायद किसी को भी नहीं थी।
बंद पड़े रास्तों ने ही शायद इस रईस बिज़नेस मेन को इस अस्पताल में आने को बाध्य किया था। पता नहीं सभी परिवार के लोग थे या शुभचिंतक लेकिन उन लोगो के समूह से ही पूरा अस्पताल लगभग भर गया था। हर तरफ़ भागमभाग सा माहौल था।
महिला बहुत देर से बच्चे को प्राकृतिक तरीक़े से जन्म देने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस प्रक्रिया में समय तो लगता ही है, किसी किसी के मामले में। कुछ लोग ऑपरेशन करने की हिदायत दे रहे थे, लेकिन सरकारी अस्पताल में इस वक़्त ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर उपलब्ध भी नहीं थे।
महिला के दर्द भरी चीखों से कभी कभी पूरा अस्पताल दहल सा जाता। बीच बीच में बादल के गरजने की आवाज़ और इसके साथ औरत की चीख की आवाज़ जब मिल जाती तो अंधेरे में डूबे इस माहौल में भयावहता सी फैल जाती। किसी अनहोनी की आशंका भी लगी हुई थी।
ख़ैर आनन फानन में कुछ समझदार नर्सो के बदौलत आखिरकार उस महिला की वेदना शांत हुई, रूई के फाहे से नाजुक एक शिशु ने दस बजकर पूरे बावन मिनट में प्राकृतिक तरीक़े से ही जन्म लिया। लेकिन बेआवाज़....बच्चा अपनी आँखों से टुकुर टुकुर अंधेरे में भी कुछ देख तो रहा था लेकिन आश्चर्य वो रोया नहीं। अपने जन्म के बाद पहली रुलाई, जो माँ को और डॉक्टरों को ये समझाने के लिए होता है कि अभी अभी जन्मा ये बच्चा शारीरिक रूप से स्वस्थ है।
बहुत से तरीक़े आजमाएँ गए लेकिन उस बच्चे ने एक चु तक नहीं कि। ये एक गंभीर चिंता का विषय था। किसी ने सुझाव दिया इस बच्चे को तुरंत शहर के किसी बड़े एन.आई.सी.यू में एडमिड करना होगा बच्चे के डॉक्टर ही बता पाएंगे कि बच्चे को क्या समस्या है। इसके लिए सुबह का इंतजार करना सही नहीं होगा।
ग़नीमत तो ये था कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद बिजली आ गयी थी, और बारिश भी शांत हो चुकी थी। माँ को सरकारी अस्पताल में बेहोशी की हालत में छोड़कर ही कुछ लोग नवजात शिशु को लेकर बड़े अस्पताल की तरफ़ रवाना हो गए। हालांकि वहां तक पहुचना अभी भी मुश्किल ही था।
वीरान सड़को पर कार तेज़ी से बढ़ रही थी। बारिश अब बन्द जरूर हो गयी थी लेकिन रह रह कर बिजली अब भी चमक रही थी। रास्ते मरघट सा सन्नाटा और उदासी लिए हुए नज़र आ रहे थे। पिता की गोद मे सोया नवजात शिशु अभी भी टुकुर टुकुर आंखें खोलें कार के भीतर जल रहे लाइट्स को ताक रहा था। और अस्पताल में बच्चे की माँ अब बेसुध पड़ी थी।
उसी वक़्त शहर के एक दूसरे छोर पर। घाटियों का शहर था ये।शहर का ये हिस्सा शहरीकरण से थोड़ा दूर ही था। देहात सा माहौल था यहां। दूर दूर तक फैली हरियाली, छोटे बड़े पहाड़ और घुमावदार घाटियां, साथ में खूबसूरत झील। सर्दियों में शहर का ये कोना लोगों के लिए पिकनिक स्पॉट बन जाया करता था। हालांकि इस वक़्त पूरी घाटी भी अंधेरे में विलुप्त ही थी। पूरे शहर में बिजली आ भी जाएं लेकिन घाटियों तक आने में उसे वक़्त लगता था, दरसल तूफ़ानी हवाओं से अक्सर घाटी के कई पेड़ टूट जाते जिससे बिजली के तारों का टूटना भी तय था। इसकी मरम्मत फ़िर सुबह ही हो पाती थी।
लेकिन कुछ था, कुछ अजीब, कुछ रहस्यों से लबरेज़। हा वो कोई अजीब सी चीज़ ही थी जो इस वक़्त गन्ने के खेतों के एक किनारे अचानक ही जन्म ले चुका था। ठीक दस बजकर बावन मिनट में। वो कहीं से चिपचिपा तो कहीं से अजीब से खुरदरे भूरे बालों वाला कोई असामान्य सा दिखने वाला एक जानवर जैसा ही था। उसकी बनावट ऐसी थी कि बड़े से बड़ा दयालु प्रवृति का महात्मा ही क्यों ना हो उस चीज़ से घिन हो ही जाएं।
ऐसा लगता जैसे असहनीय दर्द में वो गुर्रा रहा है। असल में वो रो रहा था। अपने जन्म के बाद कि पहली रुलाई। लेकिन उसे सुनने वाला, पुचकारने वाला कोई नहीं था। वो कहाँ जानता था, सदियों पहले किसी से मिलें श्राप के बदौलत वो एक बार फ़िर से जी उठा था। अपनी बदकिस्मती को दोहराने,वो किसी और के दर्द को जीने के लिए बेनाम सी जिंदगी में लौट आया था।
रात अब काफ़ी गहरा गयी थी। उस रईस बिज़नेस मेन का थोड़ी देर पहले जन्मा बच्चा इस वक़्त शहर के एक बड़े से एन.आई.सी.यू में तमाम मशीनों से घिरा हुआ था। डॉक्टर्स उसके इर्द गिर्द मंडरा रहे थे और एक अजीब सी उलझन उन सबके चेहरे में नज़र आ रही थी। ये बच्चा कुछ अजीब तो था, मतलब अभी अभी पड़ी सुइयां भी उसे रुला नहीं पाई थी। लेकिन ये कैसे संभव है...?
क्रमशः_Deva sonkar